"प्रोफेसर अज़हर हाशमी ने कबीर को अपने व्यक्तित्व में जिंदा रखा "
Profesar-Azhar-Hashmi-kept-Kabir-alive-in-his-personality

"अपना ज़मीर जिंदा रख /यानी कबीर जिंदा रख ।
सुल्तान बन भी जाए तो /दिल में फकीर जिंदा रख ।
लालच डिगा न पाएगा /आंखों का नीर जिंदा रख ।''
कबीर जैसा खरापन , विचार और व्यवहार में निष्पक्षता ,आडंबरों से मुक्त जीवन और सच को सच कहने का साहस रखने वाले हमारे दौर में ऐसे ही एक कबीर हुए (जिनका अभी हाल ही में 10 जून 2025 को देहांत हो गया) प्रो.अज़हर हाशमी । प्रो .हाशमी भारतीय संस्कृति के अध्येता , गीता मनीषी , वेद मर्मज्ञ , ज्योतिषी, सूफ़ी ,सर्वधर्म सद्भाव के प्रवक्ता , राष्ट्रवादी चिंतक ,प्रसिद्ध साहित्यकार , कवि और राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक रहे । जिनकी लेखनी और वाणी ने भारतीय समाज को एक मजबूत कड़ी के रूप में जोड़े रखने का प्रयास किया । कहा जा सकता है प्रो .अज़हर हाशमी के साहित्य ने विभिन्न धर्मों के बीच पुल का काम किया ।
13 जनवरी 1950 को राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिड़ावा गांव में प्रो . हाशमी का सूफ़ी परिवार में जन्म हुआ । प्रारम्भ से ही उनकी सभी धर्म ग्रंथों के अध्ययन में विशेष रुचि रही । प्रो.हाशमी जी ने अपने विद्यालय समय में ही लगभग दस हज़ार पुस्तकों का अध्ययन कर लिया था ।
प्रो .हाशमी जी सूफ़ी परम्परा के संवाहक रहे । वे सूफ़ी तत्व की व्याख्या इस तरह करते हैं कि साहस , सत्य और सब्र सूफ़ी के गुण हैं । परोपकार करके मौन रहना और सेवा का विज्ञापन नहीं करना उनका स्वभाव था । कितना ही बड़ा अधिकारी या नेता क्यों न हो अगर वह भ्रष्ट है तो हाशमी जी अपनी वाणी और लेखनी से उसे आईना दिखाने से नहीं चूकते , और इस बात के साक्षी वे लोग हैं जिन्होंने उनके व्याख्यानों को सुना है और जो उनकी धारदार लेखनी से परिचित हैं ।
राष्ट्रप्रेम ,प्रो हाशमी जी के साहित्य का मूल आधार है । राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए कहते हैं कि "राष्ट्र से ऊपर ,राष्ट्र से बढ़कर और राष्ट्र के विरोध में कुछ नहीं ।"
राष्ट्र गौरव , सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मूल्यों की पुरजोर पैरवी करती हैं उनकी कविताएं । उनकी कविता की पंक्तियां भी हैं -
यों तो सद्भाव ही सुहाता है हमें /शांति का मंत्र सदा भाता हमें ।
किंतु गणतंत्र पे संकट अगर हो तो /सर्जिकल स्ट्राइक करना आता है हमें ।
"मुझको रामवाला हिंदुस्तान चाहिए" इस गीत ने प्रो . हाशमी को पूरे देश में एक राष्ट्रवादी के रूप में पहचान दिलाई । इस गीत में प्रो. हाशमी ने व्यवस्था पर कठोर प्रहार किया है । इस गीत की रचना प्रो.हाशमी जी ने 1976 में तब की थी ,जब देश में अपातकाल लगा हुआ था । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी थी, तब कवि, गीतकार अज़हर हाशमी ने व्यवस्था के खिलाफ इतनी जबरदस्त अभिव्यक्ति दी कि मानो क्रांति का शंखनाद कर दिया हो । इसके बाद इस गीत को सी.पी.सी दूरदर्शन ,दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय प्रसारण में 100 से भी अधिक देशों में प्रसारित किया गया । इस कालजयी गीत के बोल हैं -
बहुत हुए हैं पतित , हमें उत्थान चाहिए /सत्यम, शिवम , सुंदरम का मान चाहिए ।
गांधीजी के सपनों का जहान चाहिए /मुझको रामवाला हिंदुस्तान चाहिए ।
बेटियों के सम्मान में लिखी उनकी विश्व प्रसिद्ब कविता "बेटियां पावन दुआएं हैं" ने उन्हें बेटियों वाले हाशमी जी के तौर पर पहचान दिलाई । म. प्र .सरकार ने इस कविता को दसवीं हिंदी के पाठ्यक्रम ( नवनीत ) में भी शामिल किया था । 2011 में म. प्र. शासन के बेटी बचाओ अभियान की शुरुआत इसी कविता की पंक्तियों को स्लोगन बनाकर की थी ।
म. प्र. साहित्य अकादमी का संस्मरण विधा के लिए दिया जाने वाला अखिल भारतीय स्तर का निर्मल वर्मा पुरस्कार, 2021 सहित कई राष्ट्रीय , प्रादेशिक पुरस्कार /सम्मान उन्हें प्राप्त हो चुके हैं ।
अज़हर हाशमी जी की दुर्लभ उपलब्धियों में से एक यह है कि उनके जीवन और साहित्य पर उनके जीवित रहते हुए ही तीन अलग -अलग विधाओं ( गीत , ग़ज़ल और व्यंग्य ) पर तीन अलग - अलग विश्वविद्यालयों ( विक्रम वि. वि. उज्जैन , देवी अहिल्या वि. वि . इंदौर एवं बुंदेलखंड वि. वि. , झांसी ) से पीएच.डी अवॉर्ड हो चुकी है ,और सबसे रोचक तथ्य यह है कि वे स्वयं पीएच.डी नहीं थे।
भारतीय संस्कृति में गुरु - शिष्य संबंध यानी आत्मा परमात्मा का बंधन । इसी पवित्र गुरु - शिष्य परम्परा का प्रो . हाशमी जी और उनके शिष्यवृंद ने निर्वाह किया । प्रो. हाशमी जी अपने शिष्यों के लिए एक समर्पित गुरु रहे , और गुरु के इस समर्पण भाव के प्रति शिष्यों की भी अटूट श्रद्धा रही इसलिए जब प्रो .हाशमी जी का रतलाम महाविद्यालय से 1987 में पहली बार अन्यत्र तबादला कर दिया गया था तब उनके शिष्यों ने जोरदार आंदोलन कर दिया । तब शासन को उनका तबादला आदेश निरस्त करना पड़ा था ।
प्रो.हाशमी जी का जीवन दर्शन श्री कृष्ण के चिंतन यानी श्रीमद भगवद गीता से प्रेरित रहा ,और भगवान कृष्ण की अध्ययन स्थली उज्जैन में ही प्रो.हाशमी ने अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की । उज्जैन आकर शिक्षा प्राप्त करना इसमें भी कुछ ईश्वरीय इच्छा रही होगी क्योंकि हुआ कुछ ऐसा था कि प्रो.हाशमी बाल्यावस्था से ही कुशाग्र बुद्धि से सम्पन्न बालक रहे ,और जिस कम उम्र में उन्होंने अपनी विद्यालयीन शिक्षा उत्तीर्ण की उस हिसाब से वे राजस्थान के किसी कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए पात्र नहीं थे क्योंकि वे अंडर एज थे ।इसलिए उन्हें प्रवेश लेने के लिए उज्जैन विक्रम वि.वि .का रुख करना पड़ा, क्योंकि यहां न्यूनतम आयु सीमा बंधन नहीं था ।
भगवान श्रीकृष्ण और उनके कर्म के संदेश को जन-जन तक पहुंचाना प्रो.हाशमी के जीवन का उद्देश्य बन गया । भगवान श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप की मौलिक व्याख्या वे कुछ इस तरह करते हैं , " कर्म के कैनवास पर चेतना के चित्रकार हैं श्री कृष्ण ।परोपकार के पुरोधा , पुरुषार्थ के प्रवक्ता और प्रज्ञा के पर्याय हैं भगवान कृष्ण ।" ऐसे ही भगवान राम पर मौलिक स्थापनाएं करते हुए हाशमी जी कहते हैं कि श्री राम ने तो त्रेता युग में केवट को आत्मीयता और अधिकार देकर उनके हितों की रक्षा को ही रेखांकित किया । आज स्वतंत्र भारत के संविधान में पिछड़े लोगों के लिए जो विशेष व्यवस्था की गई है ,मेरा मौलिक मत है कि इसकी बुनियाद अतीत अर्थात त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने केवट के ज्ञापन को स्वीकार के रख दी थी ।"
भगवान शिव के परिवार को प्रो . हाशमी जी भारतीय संस्कृति की झांकी कहते थे ,जिसमें विविधता में एकता के दर्शन होते हैं । भगवान शिव के प्रति भी उन्होंने अपना समर्पण भाव काव्य पंक्तियों में इस तरह व्यक्त किया है -
शिव यानी कल्याण है /शिव यानी उत्थान ,
शिव चिन्तन/ शिव चेतना /शिव में निहित निदान ।
जैन दर्शन के भी प्रो . हाशमी गहन अध्येता रहे । जैन धर्म पर व्याख्यान हेतु उन्हें पूरे देश में जैन सभाओं में आमंत्रित किया जाता रहा । भगवान महावीर स्वामी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए वे कहते हैं कि "दोस्ती के दस्तावेज का नाम है महावीर स्वामी । दोस्ती के इस दस्तावेज में सत्य की स्याही से लिखे हुए अहिंसा , अस्तेय और अपरिग्रह के अक्षर हैं । मेरे मौलिक मत में तीर्थंकर महावीर स्वामी मानवता के मसीहा हैं ।" एक बार स्वयं प्रो हाशमी जी ने बताया था कि चूंकि लगभग सन 1974 से मुझे गायत्री परिवार और जैन समाज में व्याख्यान के लिए बुलाया जाने लगा तो मुझे लगा कि मेरे शब्दों के अनुरूप मेरा आचरण भी होना चाहिए अतः अहिंसा पर उपदेश के पहले मैंने स्वयं मांसाहार का त्याग किया । कथनी और करनी के भेद से परे था प्रो . हाशमी का जीवन । उन्होंने जो लिखा ,जो कहा ,वह जीया ।
प्रो .हाशमी का साहित्य वह बागीचा है जहां भारतीय संस्कृति की विविध प्रजातियों यानी भिन्न - भिन्न मतावलंबियों , संप्रदायों , धर्मों और जातियों के पुष्प खिलते हैं, और जहां सौहार्द, शांति और सद्भाव की महक है। उनका साहित्य भारतीय संस्कृति की वह सरिता है जिसमें सर्वजन हिताय की लहरें उठती हैं । भारतीय संस्कृति के प्रति अपने भावों को व्यक्त करते हुए वे कहते हैं कि "भारतीय संस्कृति का उदात्त और उदार स्वरूप , दरअसल प्रेम का वह जंक्शन है , जहां सभी धर्मों की अच्छाइयों की रेलगाड़ियां ठहरती हैं ।"
प्रो.हाशमी जी सभी धर्मों के गहन अध्येता रहे । वेद , उपनिषद , श्रीमद्भगवद गीता ,कुरान, बाइबिल, जैन और बौद्ध धर्म के ग्रंथ उन्हें कंठस्थ थे । जब वे एक साथ इन सभी ग्रंथों पर प्रामाणिकता के साथ साधिकार बोलते थे तब मानो लगता था कि देव वाणी हो रही हो ।
धर्म की प्रो.हाशमी जी ने मौलिक और सरल व्याख्या कुछ इस तरह की है," सत्य का संदेश दे वह धर्म है । न्याय का निर्देश दे वह धर्म है। प्यार का उपदेश दे वह धर्म है , और कर्म का आदेश दे वह धर्म है ।"
प्रो . हाशमी जी के ज्ञान , साहित्य और उनके व्यक्तिव को रेखांकित करता ऋषि कवि , चिंतक और वैयाकरण डॉ प्रेम भारती जी का यह कथन है - "प्रो.हाशमी एक ऐसे साहित्यकार हैं जो वेदों का संपूर्ण अध्ययन कर जब वेद पर अपनी चेतना के माध्यम से उपदेश देते हैं तब वे वेदज्ञ हो जाते हैं । जब वे रहस्य की कविता में रम कर अध्यात्म की ओर उन्मुख होकर राम में बसकर और कृष्ण में रम कर लिखते हैं तो देवज्ञ कहलाते हैं । धरा से क्षितिज तक का ज्ञान अनुभव कर जब उस चिंतन के माध्यम से व्यक्त करते हैं तब वे सर्वज्ञ हो जाते हैं ।"
- श्वेता नागर, लेखिका रतलाम